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Essay on Eid in Hindi 1000 Words | ईद पर निबंध PDF

Essay on Eid in Hindi

Essay on Eid in Hindi (Download PDF) ईद पर निबंध कक्षा 5, 6, 7, 8, 9, 10 के लिए – ईद का त्यौहार खुशियों और भाईचारे का त्यौहार है। इसको दुनियाभर में मुसलमानो द्वारा मनाया जाता है इस त्यौहार को मनाने का क्या उद्देश्य है और किस प्रकार से इसे मनाया जाता है आइये जानते है इस Essay on Eid in Hindi निबंध के द्वारा।

प्रस्तावना

भारतवर्ष विविध धर्म और समुदाय व जातियों का देश है। अनेकता में एकता यहां की प्रमुख विशेषता है। इन विविध वर्ग के लोगों को जोड़ने में त्योहारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों के त्योहारों पर उन्हें बधाई देते हैं तथा एक दूसरे से गले मिलते हैं। ऐसे ही त्योहारों में ईद का महत्वपूर्ण स्थान है। यह मुसलमानों का प्रमुख त्योहार है। यह परस्पर मिलन प्रेम एकता व भाईचारे का पर्व है।

तात्पर्य व स्वरूप

इस शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘खुशी’। एक माह रमजान के बाद यह सब के दिलों में खुशियां बिखेर देता है। रमजान के तिस दिन सभी मुसलमानों को रोजे (व्रत, उपवास) रखने पड़ते हैं। तिस दिन के बाद सबवाल की पहली तारीख को ईद का पुण्य पर्व मनाया जाता है। यह दिन सबके लिए खुशियों का त्यौहार होता है, इसलिए इसको ईद कहते हैं

ईद उल फितर

फिटर का शुद्ध अर्थ होता है ‘पुण्य करना’। इस दिन अधिक से अधिक पुण्य किया जाता है। जिसके लिए कुछ विधान भी बनाए गए हैं। परिवार के प्रत्येक सदस्य की ओर से पौने दो सेर गेंहू या इसकी कीमत के बराबर रुपए -पैसे गरीब, अपाहिजो, यतीमो को वितरित किए जाते हैं। पुण्य करने  में दान दाता के दिल में यह भावना नहीं होनी चाहिए कि मैं दे रहा हूं, बल्कि इसको अपना धार्मिक दायित्व संपन्न करना चाहिए।

प्रारम्भिक तैयारियां

 ईद मनाने की तिथि से पूर्व लोग त्यौहार मनाने की तैयारी में लगे रहते हैं। घरों को साफ सुथरा रखा जाता है। परिवार के सभी सदस्यों के लिए नए वस्त्र सिलवाए जाते हैं। मिष्ठान व पकवान की प्रारंभिक तैयारी की जाती है। यह खुशी का पर्व है अतः इस दिन सभी जन स्वयं को सज धज के साथ रखते हैं।

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सामूहिक नमाज की परम्परा

इस पर्व के दिन सामूहिक नमाज पढ़ने की परंपरा है जो ईद का या प्रमुख मस्जिदों में पढ़ी जाती है। प्रातः स्नान कर स्वच्छ परिधान में सभी लोग ईदगाह में एकत्र हो जाते हैं। सभी धनी, निर्धन, छोटे-बड़े पंक्ति पथ होकर एक साथ नमाज पढ़ते हैं।

यहां पहुंचकर समाज की समस्त विषमता मिट जाती है, इसलिए इस दिन सामूहिक नमाज का विधान है। जिसमें राजा, रंक, भिखारी सभी एक समान समझे जाते हैं। इससे यह सिद्ध किया जाता है कि ईश्वर के दरबार में कोई भी छोटा, बड़ा, उच्च, नीच नहीं होता है, सभी बराबर होते हैं।

मीठी ईद के रूप में

नमाज पढ़ने के बाद सभी अपने अपने घर आते हैं। एक दूसरे से गले मिलते हैं। दूसरे धर्म के लोग भी अपने मुसलमान भाइयों के घर जाकर उन्हें ईद मुबारक कहते हुए गले मिलते हैं। दिलों में स्नेह एवं खुशियों उमड़ पड़ता है।

एक दूसरे को मिष्ठान दिए जाते हैं और घर में सवैया तथा अन्य मीठे पकवान बनते हैं जो दूसरों को बांट कर फिर स्वयं खाते हैं। इस दिन को मीठी ईद भी कहते हैं इस दिन समाज में ही नहीं सब के दिलों में मधुरता रहती है, इसलिए इसको मीठी ईद कहना सार्थक है। सारे दिन भर मधुरता व मिलन का ही वातावरण रहता है।

ईद उल जुहा

ईद उल फितर के 2 माह 10 दिन के बाद ईद उल जुहा का पर्व आता है। इसमें भी उसी प्रकार की तैयारी होती है, लेकिन यह पर्व हमें महान त्याग व बलिदान का स्मरण दिलाता है।

आज से हज़ारो वर्ष पूर्व अब्राहिम नामक एक महापुरुष पैदा हुए थे। उनकी परीक्षा लेने के लिए परमात्मा ने एक देवदूत भेजा कि वह परमेश्वर की प्रसन्नता के लिए अपनी सबसे प्रिय वस्तु की बलि चढ़ाएं। इब्राहिम के लिए परमेश्वर की आज्ञा मानना सबसे प्रमुख कर्तव्य था।

उन्होंने अपने इकलौते व प्रिय पुत्र इसहाक की कुर्बानी करने का निश्चय किया। जैसे ही बलिवेदी पर उन्होंने अपने पुत्र पर छुरी चलाने के लिए हाथ बढ़ाया तो देवदूत ने उनको रोक दिया और उसके स्थान पर एक मेढ़ा तैयार हो गया और उसके पुत्र के स्थान पर उस मेढ़ा की कुर्बानी दी गई।

कुर्बानी की परम्परा

इस परम्परा को मोहम्मद साहब ने पुनर्जीवित किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को आदेश दिया कि वह ईद उल फितर के 70 दिन बाद किसी सुंदर पशु की कुर्बानी करें। वह दिन ईद उल जुहा के नाम से मनाया जाने लगा।

इस दिन मुसलमान लोग भेड़, बकरी, ऊंट, भैंस आदि पशुओं की कुर्बानी करते हैं। इसके लिए कोई भी पशु एक साल से कम का ना हो, अधिकतर लोग बकरे की कुर्बानी करते हैं, इसलिए इसको कई लोग बकरा ईद भी कहते हैं।

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उपसंहार

ईद का पर्व बंधुत्व और मैत्री का संदेश देता है। इस्लाम के संस्थापक सर्वमान्य मोहम्मद साहब का संदेश मानव मात्र के कल्याण के लिए है। यह केवल मुसलमानों के लिए ही अनुकरणीय नहीं हैं बल्कि उनके उनमें सबका हित निहित है।

ईद उल फितर से पूर्व रोजा रखना हर व्यक्ति को त्याग व तपस्या की प्रेरणा प्रदान करता है, इससे यह सिद्ध होता है कि मानव जीवन केवल ऐसो आराम के लिए नहीं है बल्कि उसमें त्याग अनुशासन बलिदान की अनिवार्यता है। ईद की नमाज अपने घर में भी पढ़ी जा सकती है परंतु ईदगाह में नमाज पढ़ना सब की समानता का संदेश देता है।

उस दिन एक राजा को महसूस होता है कि भगवान के लिए हर मानव बराबर है। दान पुण्य करना उस दिन का सबसे महान कर्तव्य है। इसमें एक और धनी वर्ग के अंदर दया सहानुभूति व भाईचारे की भावना बढ़ती है तो दूसरी ओर गरीब यतीम अपाहिज भी विभिन्न वस्तुओं की प्राप्ति कर ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करते हैं। इसलिए हमें इस पर्व पर केवल मनोरंजन व खुशियां ही नहीं मनानी चाहिए ,बल्कि अपने धार्मिक दायित्व को भी पूर्ण करना चाहिए।

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Q&A. Essay on Eid in Hindi

ईद किस लिए मनाई जाती है?

उत्तर – ईद अल-फितर रमजान के एक महीने के उपवास के अंत की याद दिलाता है। यह एक से तीन दिनों तक मनाया जाता है। इसमें विशेष प्रार्थना, उपहार देने और दान के लिए एक अवसर होता है। यह इस्लामी कैलेंडर में 10 वें महीने शव्वाल के पहले दिन से शुरू होता है।

ईद के त्योहार का क्या अर्थ है?

उत्तर – ईद का शाब्दिक अर्थ  “ख़ुशी ” है। यह तीन दिनों तक चलने वाला त्योहार है इस दिन लोग गरीबो और यतीमो को दान देकर पुण्य प्राप्त करते है।

इस्लाम में ईद क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर – ईद 30 दिन उपवास के बाद का त्यौहार है। मुसलमान उपवास के बाद ख़ुशी मनाते है और अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं।

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