निबंध

होली पर निबंध | Essay on Holi in Hindi 1000 Words | PDF

Essay on Holi in Hindi

Essay on Holi in Hindi (Download PDF) कक्षा 5, 6, 7, 8, 9, 10 के लिए। होली पर निबंध के माध्यम से हम जानेंगे की होली का त्यौहार किस प्रकार से मनाया जाता है और इस त्यौहार का आरम्भ किसने और किस प्रकार से किया, क्यूंकि होली का त्यौहार मनाने के पीछे कई मान्यता है। सभी त्यौहारों के भांति होली का अपना ही महत्व है जो लोगो के दिलो में खुशियाँ भर देता है तो आइये आरम्भ करते है। Essay on Holi in Hindi

भूमिका

प्रत्येक त्यौहार का उद्देश्य दैनिक क्रियाकलापों से उत्पन्न कष्ट व दुख से निवृत्ति पाकर सुख पाना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए होली का त्यौहार पर्याप्त सफल है। यह रंगों का त्यौहार है। रंग भी आनंद का पर्याय है। बाहर का रंग अंदर के रंग का घोतक है। जब समग्र प्रकृति रंग से सराबोर हो जाती है तो मानव भी आनंद में झूमने लगता है। इसी आनंद का प्रतीक है होली का पर्व।

उद्देश्य

इस पर्व को होलिकोत्सव ही कहते हैं। होलीका शब्द से ही होली बना है। होलीका शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के होलक शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ भुना हुआ अन्न है। प्राचीन काल में जब किसान नई फसल काटता था तो सर्वप्रथम देवता को भोग लगाया जाता था। इसलिए नए अन्न को अग्नि को समर्पित कर भुना जाता था। उस भुने हुए अन्य को सब लोग परस्पर मिलकर खाते थे। इसी खुशी में देवता को नया अनाज का भोग लगाने हेतु उत्सव मनाया जाता था। आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में इसी परंपरा से होली का उत्सव मनाया जाता है।

होलिकोत्सव रंग में परिवर्तित

भगवान श्रीकृष्ण से पहले यह पर्व केवल होलिका दहन करके मनाया जाता था। जिसमें नए अन्न अर्पित किए जाते थे, परंतु भगवान श्री कृष्ण ने इसे रंग के त्यौहार में परिवर्तित कर दिया। भगवान श्री कृष्ण ने इसी दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था जो होली का उत्सव की खुशी में उनके घर आई थी। बाद में उन्होंने इस पर्व को गोप – गोपियों के साथ रासलीला और रंग खेलने का उत्सव के रूप में मनाया। तब से इस त्यौहार पर दिन में रंग खेलने और रात्रि को होली जलाने की परंपरा बन गयी।

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वसंत का ऋतु पर्व

होली का त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह शिशिर ऋतु की समाप्ति और बसंत ऋतु के आगमन का सूचक है। जब पतझड़ समाप्त हो जाता है। वनस्पतियों में नई कलियां खिल जाती है। सारी पृथ्वी विविध फूलों व कलियों से रंग बिरंगी हो जाती है। मानो नववधू सोलह सिंगार करके निकल रही हो। उस समय मानव का मन भी मस्त हो जाता है। वह अपने प्रिय पर्व होली में नाचकर, गाकर, मस्त हो जाता है। हृदय के रंग बाहर के रंग के द्वारा प्रदर्शित करता है।

मनाने की विधि

होली, तिथि से कई दिन पूर्व से विविध मनोविनोद द्वारा मनाना आरम्भ हो जाती है। निश्चित तिथि फाल्गुन पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन किया जाता है जिसमें प्राचीन पद्धति का अनुसरण किया जाता है। दूसरे दिन दोपहर तक पूर्ण आनंद के साथ होली खेली जाती है। लोग एक दूसरे पर रंग गुलाल डालते हैं। सड़कों पर बच्चों, बूढ़ों, लड़कियों, व औरतों की टोलियां गाती, नाचती, गुलाल मलती और रंग भरी पिचकारी छोड़ती दिखाई देती हैं। सबके दिलों में प्रसन्नता की लहर छाई रहती है। सारे देश में लोग अपनी-अपनी परंपरा से होली मनाते हैं। परंतु सभी रंग द्वारा अपनी खुशी की अभिव्यक्ति करते हैं।

मनोवैज्ञानिक दृष्टि

आनंद का सरोवर व खुशी का खजाना सब के अंतःकरण में विद्यमान है, परंतु वह कुछ बहरी शिष्टाचार्य के बंधनों से पूर्ण – रूपेण व्यक्त नहीं हो पाता है।  हम सदैव एक दूसरे का मुक्त होकर उपहास करने के लिए आतुर रहते हैं परंतु उक्त बंधन हमें रोके रहते हैं। जब वह बंधन टूट जाते हैं तो खुशी का खजाना फूट जाता है। हम अतुलित आनंद की बहरी अनुभूति करने लगते हैं। होली के पीछे यही मनोवैज्ञानिक नियम समविष्ट है।  उसमें हम शिष्टाचार के बंधन तोड़ कर एक दूसरे पर रंग आदि बिखेरते हैं। शब्दों द्वारा कहकर, स्वयं नाचकर, गाकर, अपने अंतःकरण की खुशियां व्यक्त करते हैं।

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मेल, प्रेम, एकता का प्रतीक

होली ही एक ऐसा त्यौहार है जिसमें हम शिष्टाचार के बंधन तोड़ कर छोटे-बड़े, वृद्ध, बालक, राजा, रंक एक दूसरे का विभिन्न तरीके से उपहास करते हैं। मिलकर गाते, नाचते हैं। इसमें मानो सारा समाज एकता के सूत्र में बंध जाता है। उस दिन बुरा मानना अनुचित समझा जाता है, लेकिन बुरा कहने में कोई रोक नहीं। एक व्यक्ति दूसरे से गले मिलता है। एक दूसरे को अबीर, गुलाल लगाता है। अपने हृदय की खुशियों को पूर्णरूपेण बिखेर देता है। मानो इसमें मेल व प्रेम का स्रोत बहने लगता है।

वर्तमान दोष

इतनी खुशियों के त्यौहार में वर्तमान काल में विकार पैदा होने लगे हैं। लोग शराब पीकर दुर्व्यहार प्रदर्शित करते हैं। नशे में चूर होकर लड़ाई झगड़े पर तूल जाते हैं। कई स्थानों पर अपनी शत्रुता का बदला लेने के लिए अनुचित साधनों का प्रयोग करते हैं। दुर्भाग्य से रंग का त्यौहार रंज के त्यौहार में बदल जाता है। प्रेम, दुश्मनी में बदल जाता है। इसी को कहते हैं रंग में भंग होना, लेकिन यह स्थिति कहीं-कहीं होती है जो लोग इसके महत्व को नहीं समझते वही ऐसा कार्य करते हैं।

निष्कर्ष

होली मेल, एकता, प्रेम, खुशी व आनंद का त्यौहार है। इसमें एक बुजुर्ग या प्रतिष्ठित व्यक्ति भी सबके बीच खुशी से नाचते हुए दिखाई देता है।  इसलिए इस त्यौहार को हमें दूषित होने से बचाना चाहिए। हमें किसी त्यौहार की परंपरा नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि परंपरा हमें उसके आदिकाल या जन्म काल को भी दिखा देती है। इसलिए होली के त्यौहार को भी हमें परंपरागत ढंग से ही मनाना चाहिए। आधुनिक युग की चटक-मटक में नवीन शैली द्वारा हमें उस परंपरा को नहीं तोड़ना चाहिए। हम सदैव उसकी रक्षा के लिए जागरूक रहे तभी हम अपने त्यौहार का अतुल आनंद प्राप्त कर सकते हैं।

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FAQs. on Holi in Hindi

होली को रंगों का त्यौहार क्यों कहा जाता है?

उत्तर – ऐसी मान्यता है कि होली के त्यौहार का नाम राक्षस होलिका से लिया गया है। इसी कारण से इस त्यौहार की पहली शाम अलाव के आसपास होती है – यह बुराई पर अच्छाई व अंधेरे पर प्रकाश का प्रतिक है।

होली के त्यौहार का क्या महत्व है?

उत्तर – होली का त्यौहार सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार में से एक है। इस पर्व को ‘रंगों के त्यौहार ‘ के रूप में भी जाना जाता है, होली बुराई पर अच्छाई की जीत को प्रदर्शित करता है। यह लोगों के बिच क्षमा, भाईचारा व शांति बनाने का दिन है। यह फसल कटाई का भी त्यौहार है और वसंत के आगमन और सर्दियों के समाप्ति का प्रतीक है।

होली कहाँ मनाई जाती है?

उत्तर – यह त्यौहार पूरे भारत में हर क्षेत्र में अलग-अलग परंपराओं व रीती -रिवाजो के साथ मनाया जाता है। अधिकतर उत्तर भारत, जैसे जयपुर, आगरा, मथुरा, दिल्ली में होली का उत्सव भारत के अन्य क्षेत्रो की तुलना में अधिक मनाया जाता है।

होली का क्या अर्थ है?

उत्तर – होली का त्यौहार बसंत के आगमन और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसे एक खेल के रूप में मनाया जाता है जो हिंदू भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी राधा, दूधियों और गोपियों  के साथ खेला था।

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