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महावीर स्वामी पर निबंध | Essay on Mahavir Swami in Hindi 1000 Words | PDF

Essay on Mahavir Swami in Hindi

Essay on Mahavir Swami in Hindi (Download PDF) | महावीर स्वामी पर निबंध -भगवान महावीर उन महान परुषो में से एक थे जिनके ज्ञान का दीपक आज भी लोगो को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। उन्होंने जो ज्ञान दिया वो आज भी लोगो का मार्गदर्शन कर रहा है, तो आइये जानते है महावीर स्वामी के बारे में कुछ ओर तथ्य –

प्रस्तावना

जैन धर्म संसार का एक महान धर्म है। जैन धर्म में 24 तीर्थकर अलग-अलग समय पर हुए, जो जैन धर्म के संस्थापक कहे जाते हैं। वे अपने समय के धर्म धुरंधर थे। उनमें स्वामी ऋषभदेव आदि तीर्थकर और महावीर स्वामी अंतिम व 24 वे तीर्थंकर थे। तीर्थकर का तात्पर्य है संसार रूपी सागर से तारने वाला। महावीर स्वामी के बाद तीर्थकर परंपरा समाप्त हो जाती है। उनके बाद आचार्यों के द्वारा जैनियों की परंपरा बढ़ती गयी।

जन्म परिचय

महावीर स्वामी का जन्म वैशाली गणराज्य के कुंडपुर नामक जनपद बिहार के मुजफ्फर नगर जिले में एक राज परिवार में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी ईसवी पूर्व 599 को हुआ। उनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ और  माता का नाम त्रिशला था।

उनके जन्म होने के बाद उनके पिताजी के धन-धान्य आदि सभी में वृद्धि हुई, इसलिए उनका नाम वर्द्धमान रखा गया। उन्हें वर्द्धमान महावीर भी कहा जाता है। वे बल, विक्रम में अतुलनीय एवं संसार में अजय थे, इसलिए वे महावीर के नाम से विश्व में विख्यात हुए।

बाल्यकाल व शिक्षा

वर्द्धमान महावीर का बाल्यकाल और एक राजकुमार की तरह व्यतीत हुआ। उन्हें सभी साधन घर पर ही उपलब्ध थे। अल्पायु में ही वर्द्धमान की शिक्षा प्रारम्भ हो गई थी। शीघ्र ही वे सभी विद्याओं, कलाओं में पारंगत हो गये। 

वे तत्वज्ञ थे, धर्म की ओर उनकी अभिरुचि जन्मजात थी, इसलिए वह सर्व ऐश्वर्यो के स्वामी होते हुए भी विरक्ति की ओर बढ़ रहे थे। उनका यशोदा नामक राजकुमारी से विवाह हुआ, लेकिन उनका मन घर गृहस्ती में नहीं लगता था। साथ ही वे प्रजा, राज्य व परिवार के प्रति अपने दायित्व से उदासीन भी नहीं रहे थे।

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गृह त्याग व वैराग्य

30 वर्ष की आयु में माता पिता की मृत्यु के बाद वर्द्धमान ने अपने जेष्ठ भ्राता नंदीवर्द्धन की अनुमति लेकर ग्रहस्त से नाता तोड़कर यति धर्म ग्रहण कर लिया। यति धर्म उनसे पूर्व तीर्थकरो द्वारा प्रतिपादित जैन धर्म ही था।

दीक्षा ग्रहण कर वे 12 वर्ष तक कठोर तप में लीन हो गए। कठोर तप के बाद उन्हें सत्य की अनुभूति हुई। फलस्वरुप वे ‘कैवल्य’ पद को प्राप्त हो गए। वे सांसारिक सुख, दुख, मोह, आदि से शोकादि से सर्वदा लिए मुक्त हो गए। केवल आनंद व अलौकिक सुख की अनुभूति ही ‘कैवल्य’ है।  यही साधना की अंतिम ऊंचाई है।

तीर्थकर के रूप में

जैन मतानुसार महावीर स्वामी से पूर्व 23 तीर्थकर हो गए थे। उनसे 250 वर्ष पूर्व स्वामी पार्श्वनाथ जी तीर्थकर थे। जैन मतावलम्बियों के अनुसार तीर्थकर समुदाय के सद्गुरु होते हैं। वे जन्मजात ज्ञानी होते हैं। वे संसार के जीवो को कल्याण के दीक्षा देने के लिए उत्पन्न होते हैं। इसलिए वे जगतगुरु कहलाते हैं। ‘कैवल्य’ पद तो उनके अन्य शिष्य भी प्राप्त कर लेते हैं परंतु तीर्थकर अन्य नहीं हो सकते है। ‘कैवल्य’ पद प्राप्त करने के बाद महावीर स्वामी तीर्थकर बन गए।

ज्ञान का प्रचार                                          

एक तीर्थकर के लिए सारा विश्व समान होता है। वह विश्व के दुखी मानव को सुख व शांति देकर उनका उद्धार कर देना चाहता है। इसी प्रकार महावीर स्वामी अनुभूत ज्ञान के प्रचार में जुट गए हैं। उनके उपदेशो का प्रचार साधारण व्यक्ति से लेकर राजपरिवार तक समान रूप से हुआ।

तत्कालिक राजा महाराजा भी उनके द्वारा प्रचारित धर्म से दीक्षित हुए। अंग, मगध, कौशांबी, आदि राज्यों के अधिपतियो ने उनसे ज्ञान ग्रहण किया। महावीर स्वामी ने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, पुरुष, नारी, आदि सब के लिए ज्ञान के द्वार समान रूप से खोल दिए।

अनुयायियों का विस्तार

महावीर स्वामी के शासन काल में सर्वत्र ज्ञान का प्रचार व प्रसार हुआ। कुछ जैन धर्म ग्रंथों में दिए गए तथ्यों के अनुसार उनके शासन काल में गौतम प्रमुख 14 हजार साधु, चंदनबाला प्रमुख 36 हजार साध्वियाँ, आनंद प्रमुख 1 लाख 59 हजार उपासक, जयंती प्रमुख 3 लाख 18 हजार उपासिकाएं थी।  उनके सामने 11 गणधर केवली थी जो उन्हें महान व प्रधान शिष्य थे।

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निर्वाण काल

जैन धर्म का व्यापक प्रचार करने के बाद इसवी पूर्व 527 में 72 वर्ष की आयु में पावातपुरी में महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया। राज्य गृह के समीप पावा नगर आज भी जैन लोगों का बहुत बड़ा तीर्थ है। यह स्थान बिहार शरीफ स्टेशन से लगभग 10 किलोमीटर दूर है।

उपसंहार

सैकड़ों वर्ष पूर्व शरीर त्याग देने पर भी भगवान महावीर के दिव्य संदेश आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने ऐसे मत का प्रतिपादन किया जो मानव के कल्याण के लिए है। उन्होंने विश्व को जो शांति व अहिंसा की राह दिखाई वह सबके लिए इस अशांति युग में अनुकरणीय है।

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Q&A. on Mahavir Swami in Hindi

महावीर स्वामी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर – महावीर स्वामी का जन्म वैशाली गणराज्य के कुंडपुर नामक जनपद बिहार के मुजफ्फर नगर जिले में एक राज परिवार में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी ईसवी पूर्व 599 को हुआ।

जैन धर्म के भगवन कौन हैं?

उत्तर – जैन दर्शन के अनुसार, महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर थे और सभी तीर्थंकर मनुष्य के रूप में पैदा हुए थे, लेकिन उन्होंने तप, ध्यान और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से पूर्णता या ज्ञान प्राप्त किया है।

जैन धर्म के संस्थापक कौन है?

उत्तर – जैन धर्म की उत्पत्ति बौद्ध धर्म के समान ही हुआ था। यह महावीर (सी। 599 – 527 ईसा पूर्व) द्वारा लगभग 500 ईसा पूर्व में स्थापित किया गया था।

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