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Essay on Maulana Abul Kalam Azad in Hindi 1000 Words | अबुल कलाम आजाद पर निबंध

Essay on Maulana Abul Kalam Azad in Hindi

Essay on Maulana Abul Kalam Azad in Hindi (Download PDF) | मौलाना अबुल कलाम आजाद पर निबंध के माध्यम से डॉ अबुल कलाम आजाद के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। उनका जन्म, शिक्षा, आंदोलन और उनके कार्य, तो आइये शुरू करते है। 

प्रस्तावना

देश को स्वतंत्र कराने के लिए अनेक महापुरुषों ने अपना अमूल्य योगदान दिया। उनमें से कई महापुरुष ऐसे हैं जिनका त्याग व बलिदान अपेक्षाकृत बहुत अधिक रहा। ऐसे ही महापुरुषों में मौलाना अबुल कलाम आजाद का नाम आता है। जिन का त्याग व बलिदान हमे हमेशा उनका स्मरण कराता है। मौलाना आजाद ने हमारे समाज के लिए जो अद्वितीय व प्रशंसनीय कार्य किए वह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखने योग्य हैं।

परिवार व जन्म

मौलाना आजाद के पूर्वज मुगल शासक बाबर के शासनकाल में ईरान से भारत आए थे। उनके पिता का नाम मौलाना खैरुउद्दीन हैदर था। जो अपने समय में अरबी के बड़े विद्वान थे। अंग्रेजों के दमन चक्र से पीड़ित होकर मौलाना खैरुउद्दीन सन 1857 में भारत छोड़कर मक्का के धार्मिक वातावरण में जा बसे।

वहीं एक अरबी विद्वान की पुत्री से उनका विवाह भी हो गया। मक्का में 11 नवम्बर, सन 1888 में अबुल कलाम आजाद का जन्म हुआ। उनके जन्म के 2 साल बाद ही उनके माता-पिता भारत चले आए। अबुल कलाम अपने पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।

प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा

मौलाना आजाद के बचपन का नाम गुलाम मोहिउद्दीन हैदर था। किसी भी तौर पर अपने नाम के साथ गुलाम शब्द को वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे इसलिए अपने नाम को बदलकर वह मोहिउद्दीन हैदर से अबुल कलाम आजाद हो गए। खुद का दिया हुआ यह नाम आगे चलकर ऐसा चला कि असली नाम पूरी तरह गुम हो गया।

वह बचपन से ही प्रखर प्रतिभा के व्यक्ति थे उनकी प्रारंभिक शिक्षा पर घर पर ही उनके पिताजी के द्वारा शुरू हुई। बाद में घर पर ही पढ़ाई के लिए हर विषय के अलग-अलग अध्यापक आते थे। इस प्रकार उन्हें स्कूल देखने का मौका नहीं मिला। उनका दिमाग इतना तेज था कि जिसको भी एक बार देख लेते थे वह पूरी तरह उनके दिमाग में बैठ जाता था। फलसरूप मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में वे साहित्य, दर्शन, गणित, आदि विषयों में पारंगत हो गए थे।

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लेखन व पत्रकारिता

अबुल कलाम आजाद ने 14 वर्ष की आयु में सन 1902 में एक साहित्यिक पत्रिका ‘लिसानुसिदक’ का संपादन कार्य प्रारम्भ किया। उस समय में इस पत्रिका ने अत्यंत आश्चर्यजनक धूम मचा दी थी। इसके अतिरिक्त आजाद ने ‘अन नदव’,  ‘वकील’, ‘दारुल सल्तनत;, आदि पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया।

अंग्रेज फूट डालो राज करो की नीति अपना रहे थे। मौलाना आजाद इस नीति के रहस्य को भलीभांति जानते थे। उन्होंने देश की एकता के लिए मुसलमानों में राष्ट्रीय भावना भरने व उनके मन में देश को लेकर नई उमंगे पैदा करने के उद्देश्य से ‘अल हिलाल’ नामक पत्रिका का प्रकाशन करना प्रारम्भ किया।

यह पत्रिका इतनी लोकप्रिय हो गई कि इसकी एक प्रति भी नहीं बची थी। इसमें राष्ट्रीय विचारधारा के लेख होते थे। अन्तः ‘अल हिलाल’ व स्वयं मौलाना आजाद अंग्रेजों के शिकार बन गए।

सरकार ने इस पत्रिका पर प्रतिबंध लगा दिया। फिर भी वे चुप नहीं रहे उन्होंने दूसरी पत्रिका ‘अल बलाग’ का प्रकाशन प्रारम्भ कर दिया। जब इस पर भी प्रतिबंध लगा तो उन्होंने ‘पैगाम’ नामक सप्ताहिक पत्रिका निकालना शुरू किया। इनके अलावा उनकी कई महत्वपूर्ण रचनाएं भी हैं।

हिंदू मुस्लिम एकता

मौलाना आजाद के दो प्रमुख उद्देश्य थे – राष्ट्रीय स्वाधीनता व हिंदू मुस्लिम एकता। ‘अल हिलाल’ और ‘अल बलाग’ के प्रकाशन के पीछे उनकी यही दोनों मूल भावनाएं निहित थी जो तत्कालीन शासकों को रुचिकर नहीं थी। इसलिए उन्हें 3 साल तक रांची जेल में रहना पड़ा है।

जब वे जेल से छूटे उस समय देश में असहयोग आंदोलन चल रहा था। वह उसमें कूद पड़े तथा महात्मा गांधी के संपर्क में आए। दोनों ने एक दूसरे को बहुत अधिक पसंद किया। गांधी को मौलाना जैसे देशभक्त नवयुवक की आवश्यकता थी। अल्पकाल में ही वे राष्ट्रीय कांग्रेस के अत्यंत सक्रिय सदस्य बन गए।

सितम्बर, सन 1923 को मौलाना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा यदि हिंदू मुसलमानों के भेदभाव में हमें 24 घंटे के अंदर भी आजादी मिल जाती है तो हम उसे ठुकरा देंगे क्योंकि देश की एकता आजादी से भी अधिक महत्व रखती है। 26 जनवरी, सन 1924 को उन्होंने एक एकता सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें उन्हें काफी सफलता मिली।

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राष्ट्रीय आंदोलन

सन 1927 में उन्होंने अन्य कांग्रेसी नेताओं सहित साइमन कमीशन का बहिष्कार कर सारे देश का भ्रमण किया। सन् 1935 में प्रांतीय सरकार में शामिल होने पर वे संसदीय कमेटी के सदस्य चुने गए। सन् 1940 में वे पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए उस समय उन्हें कई नेताओं सहित जेल भेज दिया गया।

सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने पर उन्हें भी जेल भेज दिया गया। इसी अवधि में उनकी पत्नी व बहन उनका निधन हो गया। मौलाना आजाद जैसे भक्त महापुरुषों के पुण्य प्रताप से सन 1947 में देश को आजादी मिली।

भारत स्वतंत्र होने पर पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री चुने गए। मौलाना आजाद की प्रखर विद्वता से प्रभावित होकर नेहरू ने उन्हें देश का शिक्षा मंत्री नियुक्त किया क्योंकि किसी भी देश की प्रगति वहां की शिक्षा पर निर्भर करती है

सन 1947 के भीषण नरसंहार से मौलाना के हृदय को अत्यंत वेदना पहुंची। लोकसभा के दोनों आम चुनाव में मौलाना जीत कर आए और देश के शिक्षा मंत्री बने रहे। अपने कार्यकाल में मौलाना ने देश की प्रगति के लिए शिक्षा नीति की नींव डाली वह सदैव स्मरणीय रहेगी।

उपसंहार 

मौलाना आजाद जैसे नेता को पाकर भारत माँ गर्व का अनुभव करती है। यद्यपि देश व समाज के लिए अपना सारा जीवन अर्पित करके 22 फरवरी, 1958 को संसार से विदा हो गये, किंतु उनके सिद्धांत व नीतियां हमें हर समय प्रेरणा देते रहते हैं कि देश की एकता देश की आजादी से अधिक महत्व रखती है। उनके इस विमल प्रयास का भारत सदा ऋणी रहेगा।

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Q&A. on Maulana Abul Kalam Azad in Hindi

डॉ अबुल कलाम आजाद कौन थे?

उत्तर – अबुल कलाम आज़ाद, (जन्म 11 नवम्बर, 1888, मक्का — मृत्यु 22 फरवरी, 1958, नई दिल्ली, भारत), इस्लामी धर्मशास्त्री ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं में से एक थे।

भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन थे?

उत्तर – मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने 1947 से 1958 तक स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया।

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस क्यों मनाया जाता है?

उत्तर – स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती के उपलक्ष्य में 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाता है।

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