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स्वामी दयानंद सरस्वती निबंध | Essay on Swami Dayanand Saraswati in Hindi 1000 Words |

Essay on Swami Dayanand Saraswati in Hindi

Essay on Swami Dayanand Saraswati in Hindi (Download PDF) | स्वामी दयानंद सरस्वती पर निबंध के माध्यम से हम स्वामी दयानन्द सरस्वती के जीवन पर प्रकाश डालेंगे। उन्होंने किस प्रकार समाज और धर्म के सुधार के प्रति कार्य किये। उनकी मृत्यु किस कारण हुई और समाज के लिए क्या किया? तो आइये शुरू करते है।

भूमिका

भारत एक धर्म प्रधान देश है। यहां की जनता प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से धर्म से संबंधित है। जब धर्म का वास्तविक स्वरूप विलुप्त हो रहा था। तब यहां के मानव का सामाजिक पतन भी होने जा रहा था। जब धर्म के नाम पर पाखंडी लोगों का बोलबाला था। अंधविश्वास लोगों की रग -रग  में व्याप्त हो रहा था।

एक ओर धर्म के नाम पर कई कुरीतियों व दूषित परंपराओं से भारतीय समाज ग्रस्त था तो दूसरी और विदेशी शासकों द्वारा समाज का शोषण भी जोरों पर था। ऐसी विषम व विकट परिस्थितियों में सुधारवादी धार्मिक नेता ऋषि दयानंद का इस भारत भूमि पर जन्म हुआ।

जन्म व विद्याध्ययन

महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म सन 1824 में गुजरात प्रांत के टंकारा नामक गांव में हुआ। उनके पिता का नाम श्री अंबा शंकर था जो शिव के अनन्य उपासक थे। ऋषि का प्रारम्भिक नाम मूल शंकर रखा गया। बाल्यावस्था में पिता ने उन्हें संस्कृत पाठ शालाओं में भेज दिया। कुशाग्र बुद्धि  होने के कारण उन्हें केवल बारह साल की अल्पायु में ही संस्कृत का पूर्ण ज्ञान हो गया। सत्य के अन्वेषण के प्रति उनकी अभिरुचि बचपन से ही थी।

सामान्य घटना व विचार परिवर्तन

एक बार शिवरात्रि के दिन परिवार के सभी सदस्यों के साथ बालक मूल शंकर ने भी व्रत रखा। शाम को सभी श्रद्धालुजन शिव मंदिर में दर्शनार्थ गये। उसने देखा कि एक चूहा शिवजी को चढ़ाए गए प्रसाद को खा रहा है और मूर्ति के ऊपर भी चल रहा है। इस दृश्य से बालक के विचार में आमूल-चूल परिवर्तन हो गया। उसने सोचा जो भगवान अपने ऊपर चढ़ाए गए प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकता, वह दूसरों की क्या रक्षा करेगा। तब से उनके हृदय में सत्य क्या है? यह जानने की ललक बढ़ गई।

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गृह त्याग व ज्ञान की खोज

शिवरात्रि वाले घटना ने ही उनके अंदर जिज्ञासा व वैराग्य के बीज बो दिए थे। चाचा व बहन की मृत्यु ने उनके दिल व दिमाग को झकझोर दिया। वह संसार को क्षणिक व नश्वर समझने लगे। उनकी विरक्तता को देखकर उनके पिताजी ने उनकी शादी करने का निश्चय कर लिया। लेकिन मूल शंकर को यह मंजूर नहीं था। 21 वर्ष की आयु में वे गृह त्याग कर सत्य ज्ञान की खोज में निकल पड़े। उन्होंने कई तीर्थो, मठों, आश्रमों, धर्म स्थलों की यात्रा की लेकिन उनकी ज्ञान पिपासा शांत नहीं हुई।

गुरु की प्राप्ति व नामकरण

अंत में वह विभिन्न धर्मस्थलों का भ्रमण करते हुए मथुरा में स्वामी बृज आनंद जी के आश्रम में पहुंचे। उनके सत्संग व प्रवचनों से वह काफी प्रभावित हुए हैं। उन से दीक्षा लेकर उनकी ज्ञान पिपासा शांत हो गई और हृदय की उलझी हुई सारी गुत्थियां सुलझ गई।

भारतीय परंपरा के अनुसार दीक्षा प्राप्ति के बाद संन्यास लेने वाले शिष्य का नया नामकरण किया जाता है। इसलिए प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखने वाले मूल शंकर का नया नाम दयानंद रखा गया। गुरु ने कहा’ दयानंद संसार की दशा की ओर दृष्टिपात करो। वह रसातल को प्राप्त हो रहा है। यही वेद ध्वनि सारे विश्व में गूंजा दो। यही मेरी गुरु दक्षिणा है।

धर्म प्रचार व आर्य समाज की स्थापना

गुरु की आज्ञा पाकर वे धर्म के प्रचार के लिए निकल पड़े। सर्वप्रथम हरिद्वार कुंभ के मेले में पहुंचे। उन्होंने पाखण्ड खंडनी पताका फहरा दी। वह  एक शहर से दूसरे शहर में जाकर वेदों का प्रचार करने लगे। स्थान स्थान पर शास्त्रार्थ किया। उन्होंने अपने संगठित प्रचार के लिए मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की।

सभी छोटे बड़े नगरों का भ्रमण किया। वे अपने देश में कई राजा महाराजा से मिले। वह तत्कालीन वायसराय से भी मिले। अनेक राजा महाराजा उनका सम्मान करते थे। मूर्ति पूजा का विरोध पाखण्ड खंडन, छुआछूत भेदभाव का विरोध, बाल विवाह व अनमेल विवाह का विरोध, कुरीतियों का विनाश, वेदों का प्रचार उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज के मूल सिद्धांत है। उन्होंने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक ग्रंथ की रचना की जो आर्य समाज का माननीय धर्म ग्रंथ है।

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स्वामी जी का निधन

उनका निधन भी कुरीतियों के विरोध के प्रतिरोध के परिणाम स्वरूप हुआ। एक बार जोधपुर के राजा जसवंत सिंह एक वेश्या की पालकी को कंधा दे रहे थे। ऋषि दयानंद ने उन्हें समझाया कि राजा होकर उन्हें ऐसा हीन कार्य नहीं करना चाहिए। इस पर वेश्या ने अपने अपमान का बदला लेने की चाल चली है। उसने अपने रसोइए जगन्नाथ को इसके लिए तैयार किया। रसोइए ने दूध में कांच पीसकर स्वामी जी को पिला दिया, जिसको पीते ही उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

उपसंहार

स्वामी जी के निधन से सभी प्रबुद्ध जनों को हार्दिक आभार पहुंचा। किंतु वह हमारे बीच में ना होते हुए भी युग युग तक अपना संदेश दे रहे हैं।  उनके संदेश हमें आज भी सद मार्ग की ओर ले जा रहे हैं। ऋषि दयानंद के जो सिद्धांत थे, उन्हें आज भारत सरकार ने कानून का रूप देकर समाज में लागू कर दिया है। इसलिए उनके अमर संदेश हमें समय-समय पर अंधविश्वास से उबरते रहेंगे।  भारतीय समाज ऋषि दयानंद जी को सदैव स्मरण करते हुए उनके अमूल्य उपदेशों के द्वारा प्रेरणा प्राप्त करता रहेगा।

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FAQs. on Swami Dayanand Saraswati in Hindi

दयानंद सरस्वती क्यों प्रसिद्ध हैं?

उत्तर – दयानंद सरस्वती, 1876 में ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने अधिकार को आवाज देने वाले पहले भारतीय व्यक्ति थे। इसके अलावा वह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक नेता और एक वैदिक विद्वान थे। वे ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित थे और उन्होंने वेदों का वैदिक संस्कृत से संस्कृत और हिंदी में अनुवाद किया ताकि आम आदमी इसकी ज्ञान की प्राप्ति कर सके।

दयानंद सरस्वती की हत्या किसने की?

उत्तर – आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती की जगन्नाथ नामक व्यक्ति ने 23 दिसंबर, 1926 को हत्या कर दी थी।

दयानंद सरस्वती ने क्या किया?

उत्तर – वह एक सामाजिक नेता, भारतीय दार्शनिक और वैदिक धर्म के सुधार आंदोलन आर्य समाज के संस्थापक थे। वे वेदों के ज्ञान में विश्वास करते थे। उन्होंने कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत की वकालत की।

दयानंद सरस्वती की उपलब्धियां क्या हैं?

उत्तर – उन्हने वैदिक शिक्षा प्रदान करने के लिए गुरुकुलों और समाज की स्थापना की और वह भारत के इतिहास में सबसे कट्टरपंथी सामाजिक-धार्मिक सुधारकों में से एक थे।

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